रविवार, 9 नवंबर 2008

घुसपैठ ..गाँव से ब्लॉग जगत में


गाँव घर के बाहर अपनी माटी की महक शहर में धूल-गर्द के बावजूद आज भी उतनी ही ताजगी लिए मेरे भीतर मौजूद है। कुछ लोग इसे मेरा पिछडापन कह लें मगर मुझे पता है कि यहाँ ऐसा कहने वाले मेरी दुनिया में किसी दूसरे लोक के प्राणी कहे जाते हैं। फिलहाल तो ऐसे ही मामला चल रहा है,जे एन यु से पढने के बाद अब दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएच.डी कर रहा हूँ। हालांकि मेरी शिक्षा-दीक्षा के संस्कार मेरी ही माटी के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने बनाये हैं । यूँ कह लीजिये कि इलाहाबाद ,जे एन यु और दिल्ली यूनिवर्सिटी की शिक्षा की त्रिवेणी अपने दिल में लिए दुनिया-जहाँ को हर कोण से देखने की कवायद कर रहा हूँ पर याद रहे कि अमेठी के एक गाँव का छोकरा अभी भी गाँव का ही है। गाँव के डीह के ब्रह्म बाबा जो वट वृक्ष के रूप में स्थापित हैं आज भी मेरे इर्द-गिर्द हैं ।जो वहाँ के सभी धर्मों के त्योहारों में समान रूप से शामिल हैं।